दुःख में, दुखों के गर्भ में, सुख के अनछुए सन्दर्भ में, आयु है क्या, क्या आंकलन, न समय, न समय का ही स्मरण | थाह पा लूं, यदि इस अथाह की, तो इस चंचल चिरायु चाह की, गति को अपनी गति मिले, चाहे भाव मिले या क्षति मिले | इस कोमल कल्पना को तोलकर, भाव शब्दों में बोलकर, चिरनिद्रा मृत्यु कि पा लूं मैं दुखों को छंद दे, गा लूं मैं, यही आस है, यही कामना, शीघ्र हो अथाह से सामना | - चेतना पंत |
No comments:
Post a Comment